आईएएस-आइपीएस की मित्रता ने संभाली काशी की कानून-व्यवस्था
मित्र दिवस पर पढ़िए काशी लाइव की विशेष रिपोर्ट
वाराणसी। विकास बागी
यूं तो अविनाशी काशी के वासी बाबा यानि काशी विश्वनाथ को अपना दोस्त, हमदर्द सब मानते है। खुशी हुई तो बाबा के दर्शन को चले गए और नाराज हुए तो बाबा को बीच चौराहे पर खड़ा होकर सुना भी देते हैं, मानो शिव से सीधा संपर्क हो। बनारस में साहित्य, कला, नृत्य-संगीत की दुनिया में बहुत सी जोड़ियां बनी लेकिन आज हम आपको उन लोगों की दास्तां सुनाएंगे जो पुलिस और प्रशासनिक अमले से जुड़े हैं। अमूमन आइएएस और आइपीएस या पीसीएस और पीपीएस की जोड़ियां नहीं बनती लेकिन वाराणसी में कुछ ऐसे अधिकारी तैनात हुए जिन्होंने अपने काउंटर पार्ट के साथ मिलकर काशी के लिए कुछ किया।
दशकों तक याद रखी जाएगी प्रांजल-अजय की जुगलबंदी-
काशी के एक दशक में सबसे अधिक चर्चित जोड़ी रही है आइपीएस अजय मिश्र और आइएएस प्रांजल यादव की। अखिलेश यादव की सरकार में वर्ष 2013 में अजय मिश्र बतौर एसएसपी और प्रांजल यादव जिलाधिकारी थे। अजय और प्रांजल की जोड़ी ने काशी के विकास के लिए ऐसे-ऐसे कार्य किए जिन्हें जनता आज भी याद करती है। पांडेयपुर का फलाईओवर हो या फिर शहर के विभिन्न स्थानों पर लगने वाला जाम, दोनों अधिकारियों की जोड़ी ने बखूबी काम किया। दोनों के बीच काम को लेकर इतनी संजीदगी थी कि कई मौकों पर अजय मिश्र की बातों को प्रांजल यादव ने कभी काटा नहीं। दुर्भाग्य था कि काशी की यातायात व्यवस्था को संभालने की कोशिश में अजय मिश्र की मेहनत सपा के कुछ नेताओं को रास नहीं आई और अजय मिश्र का स्थानांतरण हो गया। प्रांजल की फिर दूसरे कप्तानों से वैसी जोड़ी नहीं बन पाई।
डीके बन गए थे डीएम, रविंद्र के हाथों में रहती लाठी- –
2010 में बसपा सरकार थी। मायावती ने बनारस की कानून-व्यवस्था की कमान आइएस रविंद्र व आइपीएस डीके ठाकुर के हाथों में दी थी। यूं तो डीके ठाकुर तेजतर्रार आइपीएस थे। मायावती राज में सपा के प्रदर्शन की हवा निकालने वाले डीके ठाकुर की बनारस में पारी शांत थी। तत्कालीन जिलाधिकारी रविंद्र आइपीएस और डीके ठाकुर आइएएस की भूमिका में नजर आते। बनारस में अपनी तैनाती के दौरान डीके ठाकुर मास्टर साहब के नाम से चर्चित थे। सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान डीएम रविंद्र लाठी लेकर सबसे आगे खड़े रहते।
और बनारस से दंगा समाप्त कर दिया सौरभ चंद करमवीर की जोड़ी ने –
नब्बे के दशक में जब काशी समेत पूरे देश में राम मंदिर निर्माण की गूंज थी, बनारस में आए दिन दंगे होते थे। 1990 से लेकर 93 तक वाराणसी के जिलाधिकारी थे सौरभ चंद्र। इसी दौरान यहां एसएसपी बनकर आए थे कर्मवीर सिंह। उस दौरान सौरभ चंद्र और करमवीर सिंह की जोड़ी ने बनारस के दिल में अपनी जगह बनाई और काशी को दंगामुक्त करने में अहम भूमिका निभाई। सौरभ चंद उस समय सख्त तेवर वाले डीएम माने जाते थे। कहा जाता है बनारस के दंगों के मास्टरमाइंड का सौरभचंद्र ने ही खात्मा कराया था। करमवीर सिंह के बाद एसएसपी रहे सीएम भट्ट के साथ भी सौरभ चंद्र की खूब जमी।

पूरे बनारस को बना लिया था मित्र, विदाई में छोटा पड़ गया था स्टेशन-
बनारस में एक ऐसे जिलाधिकारी हुए जिनका नाम और काम आज भी पुरनियों के जेहन में है। ऐसा जिलाधिकारी कि जब सरकार ने उनका बनारस से स्थानांतरण किया तो उन्हें विदाई देने के लिए पूरी काशी कैंट रेलवे स्टेशन पर उमड़ पड़ी थी। वह थे महेश प्रसाद। 1971 में बतौर जिलाधिकारी महेश प्रसाद वाराणसी में तैनात हुए थे। इमरजेंसी लगने से पूर्व जून 1974 में उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में महेश प्रसाद काशी के जन-जन के प्रिय हो गए थे। उनके तबादले की सूचना पर उन्हें विदाई देने के लिए लोग कैंट रेलवे स्टेशन पर उमड़ पड़े थे। क्या गरीब और क्या अमीर, सबकी आंखें नम हो गई थी उन्हें विदाई देने।
बनारस के पहले सिंघम थे भूरे लाल
यू ंतो अजय देवगन की फिल्म सिंघम आने के बाद कई पुलिसकर्मी अपने कार्य से सिंघम के खिताब से नवाजे गए लेकिन बनारस में अस्सी के दशक में एक ऐसा जिलाधिकारी आया था जिसे आज भी लोग रियल सिंघम के नाम से जानते हैं। नाम था भूरे लाल। महज दो महीने के कार्यकाल में ही बनारस का बच्चा-बच्चा भूरे लाल को जान गया था। भूरे लाल जब शहर का जायजा लेने निकलते तब मजाल क्या कि कोई पान की पीक इधर-उधर थूक दे। बनारस के रंगबाजों पर भूरे लाल भारी पड़े थे। भूरे लाल ने भी काशीवासियों के दिलों में अपनी जगह बनाई।
काशी को अपना बनाया तो मिला खूब प्यार
काशी को देश की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। बनारस में आला अधिकारियों की तैनाती पर सरकार विशेष नजर रखती है और अपने चुनिंदा अधिकारियों को ही बनारस भेजती है। काशी में जिसे बाबा कालभैरव का आशीर्वाद मिला उसने खूब तरक्की की। ऐसे ही चर्चित नामों में एक नाम है अवनीश अवस्थी का जो वर्तमान में योगी सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे। विश्वनाथ मंदिर के कायाकल्प का प्रयास अवनीश अवस्थी के कार्यकाल में ही चर्चा में आया लेकिन सरकारी की दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे मुकाम नहीं पा सका। वक्त बदला, दशक बदला और एक बार फिर मोदी-योगी सरकार में विश्वनाथ मंदिर को नया आयाम मिला। इस चर्चा में एक और अधिकारी का नाम न लेना बेमानी होगी और वह नाम है नितिन रमेश गोकर्ण का। वाराणसी में वह डीएम से लेकर कमिश्नर तक के पद पर सुशोभित हुए और विश्वनाथ मंदिर के उद्धार को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। मायावती सरकार में सबसे ताकतवर माने जाने वाले आइएएस कुंवर फतेह बहादुर को भी बनारस याद करता है। इसके साथ आरएस टोलिया, योगेश्वर राम मिश्र, एलबी तिवारी, वीणा, जीएल मीना, अनिल संत, बाबा हरदेव सिंह, विजय किरण आनंद, नवनीत सिकेरा समेत कई अधिकारी हुए जिन्हें बनारस ने अपना मित्र माना और उन्हें खूब प्यार दिया। बदले में इन अधिकारियों ने भी काशी का मान रखा और अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया।
एडीएम और एसपी ने भी जमाया रंग, एक नरम-एक गरम
बनारस में डीएम और एसएसपी की जोड़ी के साथ एडीएम सिटी और एसपी सिटी की भी जोड़ियां चर्चा में रही। दो दशक में सबसे चर्चित जोड़ी रही अटल राय- विजय भूषण और दिनेश सिंह- विनय सिंह की। वर्ष 2009 में एक तरफ शासन ने अटल राय को एडीएम सिटी और विजय भूषण को एसपी सिटी बनाकर बनारस भेजा। अटल और विजय भूषण की जोड़ी ने भी काशी में खूब रंग जमाया। अटल राय नरम तो विजय भूषण गरम मिजाज वाले माने जाते। ऐसी ही बनारस में एक और जोड़ी बनी जो बीते दिनों टूट गई। एसपी सिटी दिनेश सिंह और एडीएम सिटी विनय कुमार सिंह की जोड़ी रही। 2018 सेे 2020 के बीते माह तक दोनों अधिकारियों की जोड़ी ने बीएचयू बवाल से लेकर कई मोर्चे पर डीएम और एसएसपी से आगे निकल गए।





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