प्रयागराज 30 अप्रैल 2022: आजकल के बच्चे कितने जागरूक हैं इसका सटीक उदाहरण मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में देखने को मिला। जहां छह वर्ष की बच्ची खुशी अपना इलाज करवाने अस्पताल के ओपीडी नंबर 13 मनोवैज्ञानिक कक्ष में अकेले ही पहुंच गई। बच्ची की इस साहस भरी जागरूकता ने सभी को हैरान कर दिया।
चिकित्सकों से हुई बातचीत में खुशी ने बताया कि “खेलते समय उसके सर पर चोट लग जाने पर उसकी दोस्त हर्सिता ने उसे अस्पताल जाने की सलाह दी।” खुशी के सभी दोस्त उसके साथ अस्पताल तक आए पर वह सभी अस्पताल परिसर के गेट पर ही रुक गए। खुशी ओपीडी परिसर में इर्द गिर्द घूम रही थी। वहां मौजूद नैदानिक मनोचिकित्सक डॉ ईशान्या राज ने उससे ओपीडी में आने का कारण पूछा, खुशी ने बताया कि उसे दवा चाहिए उसके सर में चोट लग गई है और उसके माता पिता पास की ही कालोनी में सफाई का काम करते हैं। उसके इस मासूमियत भरे जवाब ने वहां मौजूद सभी चिकित्सक स्टाफ का मन मोह लिया। उन्होंने खुशी को खाने पीने का सामान दिया व उसके सर पर दर्द निवारक औषधि लगाई व उसे दवा दी।
डॉ ईशान्या ने बताया कि दोपहर 1 बजे जब हम सभी मरीजों को देखने में व्यस्त थें इसी बीच ओपीडी के अंदर एक बच्ची आई। स्टाफ ने उससे उसका पूरा हाल जाना। ऐसी घटनाएं भले थोड़े समय के लिए बच्चों के उत्साहवर्धन से जोड़कर देखी जाती हैं पर कहीं न कहीं ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि बहुत से ऐसे माता पिता हैं जो बच्चों की परवरिश में लापरवाही करते हैं। एक बच्ची के अस्पताल तक अकेले आना उसकी सुरक्षा से संबंधित अनेक सवाल खड़े करता है। ऐसे में बस यही कहना उचित होगा की अपने बच्चों का बेहद ख्याल रखें उन्हें जागरूक करें, उनका उत्साहवर्धन करें पर उन्हें कभी सामाजिक स्थल पर अकेला न छोड़ें। बचपन जीवन का वह समय या अवस्था है जब बच्चा सामाजिक व्यवहार के मूल तत्व सीख रहा होता है। ऐसे में बच्चों के साथ उनके बचपन में सकारात्मक या नकारात्मक घटनाक्रम की जैसी याद जुड़ती है वह जीवन व समाज को लेकर ठीक वैसी ही धारणा बना लेते हैं।
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