#राजेश्वरी_महिला_महाविद्यालय में सुभाष_चन्द्र_बोस की जयन्ती पर संगोष्ठी सम्पन्न*
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हरहुआ – स्थित बैजलपट्टी राजेश्वरी महिला महाविद्यालय में आज प्रबंधक निदेशक साहित्यकार डॉ राघवेन्द्र नारायण सिंह की अध्यक्षता में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
साहित्यकार डॉ राघवेन्द्र नारायण ने अपने सम्बोधन में छात्राओं और शिक्षकों से विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सुभाष चन्द्र बोस बहुमुखी प्रतिभा के अप्रतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बलिदानी थे जिनका व्यक्तित्व गांधी जी के समानान्तर या उससे भी अधिक आयामी था। सुभाष बाबू के जीवन पर विशद चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चौदह सन्तानों में वे अपने माता पिता की नौवीं सन्तान थे। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अहम था। अंग्रेजों ने उनको अपना सबसे बड़ा शत्रु समझकर उन्हें देश से बाहर रखने की कोशिश की। लेकिन सुभाष चन्द्र बोस ने बाहर से भी उनपर आक्रमण किया और अन्ततः अंग्रेजी शासन का अन्त उनकी खौफ की वजह से ही हुआ।
साहित्यकार डॉ राघवेन्द्र नारायण ने सुभाष चन्द्र बोस पर स्वामी विवेकानन्द के विचारों की छाप का जिक्र करते हुए कहा कि बारह साल की अवस्था में ही उन्होंने विवेकानन्द के सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन कर लिया था। स्वामी विवेकानन्द महर्षि अरविन्द और स्वामी दयानन्द सरस्वती उनके आदर्श रहे। आज के युवा यदि विवेकानन्द और सुभाष चन्द्र बोस को अपना आदर्श बना लें तो भारत विश्व गौरव हासिल कर सकता है। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने पिता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए आई सी एस की परीक्षा इंग्लैड जाकर कठिन परिस्थितयों में चौथी रैंक के साथ उत्तीर्ण की थी। लेकिन उन्होंने यह कहकर अपना इस्तीफा ब्रिटिश हुकूमत को दे दिया था कि वे ब्रितानी हुकूमत की गुलामी नहीं कर सकते और भारत वापस लौट कर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। उनको ग्यारह बार जेल की सजा हुई और अन्ततः जेल से ही वे वेश बदलकर विदेश जाकर जापान के सहयोग से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जंग करते हुए अन्डमान निकोबार समूह पर कब्जा कर लिए और अपना झंडा फहरा चुके थे। इस तरह अंग्रेजी हुकूमत पर पहला वज्र प्रहार सुभाष चन्द्र बोस ने ही किया था। यदि तत्कालीन नेतृत्व ने सुभाष चन्द्र बोस का साथ दिया होता तो भारत विभाजन की पटकथा नहीं लिखी गई होती। आजाद हिन्द फौज और आजाद हिन्द रेडियो उनकी योजना के प्रमुख अंग थे।
महात्मा गाँधी से उनके मतभेद नीतिगत थे। गांधी की इच्छा के विरुद्ध भी उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना उनकी काबिलियत और लोकप्रियता का बेहतरीन साक्ष्य है। बाद में गांधी जी की असहयोगात्मक रवैये के कारण उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर फारवार्ड ब्लाक की स्थापना के माध्यम से अपनी मुहिम जारी रखी। गांधी जी से मतभेद के बावजूद उन्होंने गांधी को राष्ट्र पिता कहा था और गांधी जी ने उन्हें नेता जी कहकर सम्बोधित किया था। साहित्यकार डॉ राघवेन्द्र नारायण ने छात्राओं से कहा कि वे सुभाष चन्द्र बोस की रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट को नहीं भूलें क्यों कि यह सुभाष चन्द्र बोस की स्त्रियों के प्रति प्रगतिशील सोच को दर्शाता है। आज के भारत में सुभाष चन्द्र बोस और भी प्रासंगिक हो गये हैं। उनके बतलाए गये मार्ग पर चलकर भारत की तमाम समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। वे युवा ऊर्जा के प्रतीक थे ,आज भी हैं और कल भी रहेंगे। साहित्यकार डॉ राघवेन्द्र नारायण ने सुभाष चन्द्र बोस पर और परिचर्चा की आवश्यकता पर बल दिया और उनके सर्वांग साहित्य को प्रचारित प्रकाशित करके युवाओं और जनमानस तक पहुंचाने की आवश्यकता पर
सरकार को पहल करने की सलाह भी दी।
कार्यक्रम में समस्त शिक्षकों कर्मचारियों और छात्राओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ सुमन सिंह और धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के उपनिदेशक अंशुमान सिंह ने किया। कार्यक्रम में डॉ शालिनी नाग,प्रियंका सिंह, प्रियंका श्रीवास्तव,बी एन पांडेय,बसन्ती देवी, इकबाल अहमद डॉ संतोष श्रीवास्तव इत्यादि लोग उपस्थित रहे।
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