December 3, 2024

ज्योतिष्पीठ की जमीन के विवाद मे वासुदेवानंद और अविमुक्तेश्वरानंद आमने-सामने-

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ज्योतिष्पीठ की जमीन के विवाद मे वासुदेवानंद और अविमुक्तेश्वरानंद आमने-सामने_____

 

प्रयागराज: ज्योतिष्पीठ का विवाद एक बार फिर सतह पर आ गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। प्रयागराज में पीठ की जमीन व सुविधा पाने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती व ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आमने-सामने हैं। माघ मेला में शिविर लगाने के लिए दोनों ने प्रशासन से उक्त पीठ की जमीन व सुविधा मांगी है।

संगम तट पर जनवरी-2023 में माघ मेला के लिए तंबुओं की नगरी बसाने का काम शुरू हो गया है। अभी तक शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को ज्योतिष्पीठ व द्वारिका पीठ की जमीन-सुविधा मिलती थी। स्वरूपानंद 11 सितंबर, 2022 को ब्रह्मलीन हो गए। इसके बाद उनकी व्यवस्था से जुड़े लोगों ने द्वारिका पीठ पर स्वामी सदानंद सरस्वती व ज्योतिष्पीठ पीठाधीश्वर के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का अभिषेक कराया, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर रोक लगा दिया है।

इधर, स्वरूपानंद के पक्ष ने दोनों पीठ के लिए जमीन व सुविधा मांगी है। मेला प्रशासन को पत्र देने वाले मनकामेश्वर मंदिर के महंत श्रीधरानंद ब्रह्मचारी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हमें द्वारिका व ज्योतिष्पीठ की जमीन-सुविधा मिलती रही है। गुरु जी (स्वामी स्वरूपानंद) के ब्रह्मलीन होने के बाद निर्विवाद रूप से स्वामी सदानंद द्वारिका पीठ के पीठाधीश्वर बने हैं। साथ ही पूर्व की भांति ज्योतिष्ठपीठ की जमीन-सुविधा चाहिए, क्योंकि कोर्ट ने उस पर रोक नहीं लगाई है। वहीं, स्वामी वासुदेवानंद के प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी का कहना है कि ज्योतिष्पीठ पर हमारा दावा है और रहेगा। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का उक्त पीठ से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में उन्हें जमीन व सुविधा दी गई तो मामले को कोर्ट में ले जाएंगे।

माघ मेला के विशेष कार्याधिकारी संत कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ज्योतिष्पीठ की जमीन व सुविधा परंपरा के अनुसार दी जाएगी।

ज्योतिष्पीठ में शंकराचार्य पद को लेकर विवाद 69 वर्षों से चल रहा है। प्राकृतिक आपदा, स्थानीय राजाओं के द्वंद्व के कारण उत्तराखंड के चमोली जिला स्थित ज्योतिष्पीठ 165 वर्ष तक खाली रही। संतों, विद्वानों व राजाओं के सामंजस्य से 11 मई, 1941 को स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती उक्त पीठ के पीठाधीश्वर बनाए गए। वह 20 मई, 1953 को ब्रह्मलीन हो गए। इनकी वसीयत में स्वामी शांतानंद का नाम उत्तराधिकारी के रूप में लिखा था।

स्वामी शांतानंद का छह जून, 1953 को ज्योतिष्पीठाधीश्वर के रूप में 12 जून, 1953 पट्टाभिषेक हुआ। इसके विरोध में करपात्री जी महाराज ने उसी पीठ पर 24 जून, 1953 को कृष्णबोधाश्रम को पीठासीन कर दिया। यहीं से उक्त पीठ पर विवाद शुरू हुआ। फिर 10 सितंबर, 1973 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम ब्रह्मलीन हो गए। इसके बाद उनकी वसीयत का दावा करते हुए करपात्री जी ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य बनवा दिया। इसके बाद कोर्ट में विवाद चल रहा है|