*जब सोच ही इतनी संकीर्ण है तो फिर सबका साथ..!!*
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आजकल राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक चिह्नों को भी दलगत राजनीति के चश्मे से देखने की जो नई प्रवृत्ति देखने में आ रही है!
वह लोकतंत्र के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है!
इस प्रवृत्ति में यह दंभ छिपा हुआ है कि केवल एक ही दल देश के गौरव की रक्षा करने में समर्थ है!
हाल ही में अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक लौ में विलीन करने को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए!
अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक थी और उसका श्रेय दिवंगत इंदिरा गांधी को दिया जाता है!
दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई ने तो उस समय उन्हें दुर्गा का अवतार की संज्ञा दी थी!
आजकल कुछ नेताओं के एक दल के होते हुए भी दोनों की सोच में जमीन आसमान का फर्क पाया जाता है!
जब सोच ही इतनी संकीर्ण है तो फिर सबका साथ सबका विकास कैसे संभव है?
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