*आयुर्वेदिक डॉक्टरों को प्रशिक्षण के बाद सामान्य ऑपरेशन करने की अनुमति..!*
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अगर धरती पर व्यक्ति के रूप में किसी को भगवान की संज्ञा दी जाती है तो वह है चिकित्सक यानी डॉक्टर, जो बीमारियों का इलाज कर लोगों का जीवन बचाते हैं। उनके इस कार्य को सबसे बड़ी सेवा के रूप में देखा जाता है। लेकिन जब यही चिकित्सक केवल मुनाफा कमाने के लिए काम करने लगें और निजी स्वार्थों के लिए समय-समय पर अपने कार्य को बंद कर हड़ताल या मरीजों पर पैसा ना होने पर ईलाज ना करना शुरू कर दें, तो स्थिति बहुत विकट हो जाती है। उनकी हड़ताल तथा पैसे न होने के कारण इलाज से वंचित मरीजों के सामने जान बचाना एक बड़ी चुनौती हो जाती है। यानी एक तरफ डॉक्टर जान बचा कर भगवान का दर्जा हासिल करते हैं, दूसरी ओर उनकी वजह से जान जाने की नौबत खड़ी हो जाती है!दरअसल, हाल ही में सरकार आयुर्वेदिक डॉक्टरों को प्रशिक्षण के बाद सामान्य ऑपरेशन करने की अनुमति देने के लिए नियम लेकर आई है। इससे सर्जरी या ऑपरेशन करने वाले डॉक्टरों की संख्या और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से गुणवत्ता बढ़ेगी।खर्च में कमी आएगी और सुदूर क्षेत्रों में भी ऐसे डॉक्टरों की उपलब्धता होगी।इस नियम पर एलोपैथिक डॉक्टरों ने कड़ी आपत्ति जताई है और डॉक्टरों के एक समूह ने हड़ताल भी किया, जिस दौरान बहुत सारे मरीज इलाज से वंचित रहे। एलोपैथिक डॉक्टरों का कहना है कि शल्य चिकित्सा या ऑपरेशन का अधिकार केवल उन्हीं के पास होना चाहिए। जबकि यह स्वास्थ्य सेवाओं के विकास में एक अवरोधक की तरह की काम करेगा।भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देशो में से एक है, जिसमें चिकित्सा सेवाएं जनसंख्या अनुपात के अनुसार अभी तक उपलब्ध नहीं है। ऐसे में चिकित्सा सेवाओं का विकास और विस्तार किया जाना चाहिए। खासतौर पर महामारी का सामना करने के दौरान डॉक्टरों को हड़ताल करने के बजाय सहायक वर्गों का दायरा बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए।
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